रविवार, मार्च 01, 2015

निकली हैं .. ख्वाहिशें कुछ


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निकली हैं , ख्वाहिशें कुछ ,
टहलने ज़रा !
बेज़ार थीं , सदी से ,
बहलने  ज़रा !
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अपनी -सी हो गई हैं ,
 तनहाइयाँ हमारी !
साथी सभी पुराने लगे ,
हैं जलने ज़रा :)
___________________ डॉ. प्रतिभा स्वाति

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