सोमवार, नवंबर 25, 2013

ख़ाली खत ...

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बहुत  दिन हुए ,
खत नही लिखा !
बहुत  दिन  हुए ,
खत    नही   दिखा  !

वो  खत  /  जिसमे  
यादों   की  महक ,
बसती    है ?
वादों   की   महक  ,
बसती    है ?

कुछ  नमक   जैसे / शिकवे  !
कुछ   चटपटे - से   गिले  !

मैं   उसे  रोज़  पढ़ती   हूँ  !
और  जवाब  गढ़ती   हूँ  !

मुस्कुराती  हूँ   !
आंख   नम   करती  हूँ  !
बातें   खुदसे  / उससे ,
कम   करती   हूँ  !

उसे   नहीं   छुपाती  ,
किताबों   में  !
सरहाने  भी  नहीं  !

हाथ  में  लेकर ,
सोचती  हूँ  , आज   लिखूंगी  !
पर   दूर - दूर  तक मुझे ,
कोई  अपना  नज़र नहीं  आता  !
कोई   सपना  नज़र  नही  आता !

क्यूँ  ? मैं   नहीं  लिख  सकती  ,
खत   ख़ुदको  ?
पर  /  कलम  सन्न -सी  !
सूख   गई   है   सियाही  !

और  /  आज  ,
वो  ख़ाली  खत   भी ,
खो   गया   है  ! 
ओह !  आख़िर  / ये 
मुझे  क्या  हो   गया  है !
----------------------------  डॉ . प्रतिभा   स्वाति 
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